Let’s Learn Something
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Let’s Learn Something

प्रिय वाचक मित्रों,     

नमस्ते,

“ चलो कुछ सीखें” इस विचार के साथ इस वेबसाइट के मांध्यम से आप सभी से जुड़ने का मेरा यह विनम्र प्रयास है, आशा है, आप सभी को यह पसंद आएगा।

हम सभी ने अपने जीवन काल में यह जरुर महसूस किया होगा कि निरंतर सीखना एक आजीवन प्रक्रिया है, और जितना अधिक हम अपनी शिक्षा को कुछ नया सीखने में लगाते हैं, उससे कुछ अधिक ही इससे प्राप्त करते हैं, इसलिए लगातार बदलती दुनिया में हर दिन कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए।

अब प्रश्न यह है कि क्या सीखें ? और कहां से सीखें ? इस का समाधान इशावाश्य उपनिषद में मिलता है :-

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥

वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है।

यहां अविध्या से सामाजिक जीवन और विध्या से आध्यात्मिक जीवन को समझ सकते हैं, और यहि हमारे यहां होने का मूल कारण है, सामाजिक जीवन में हम साहित्य, आयुर्वेद, विज्ञान इत्यादि विषयों को समझने का प्रयास करेंगे और आध्यात्मिक जीवन में मनुष्य के जीवन के उद्देष्य को जानने का प्रयत्न करेंगे।

हमारी इस यात्रा में यह साइट हमारी साथी रहेगी, जो हमें अज्ञात को ज्ञात करने की खोज के मार्ग पर हमारे दृष्टिकोण को विकसित और दूरदर्शी बनाती रहेगी। मुझे यह भी उम्मीद है कि, जब भी हम इसकी गोद मे आएंगे (पन्नों/लेखों को बार बार पढ़ेंगे) तो वे हर बार हमें (एक माँ की तरह ) नये विचार और नये दृष्टिकोण के रुप में प्रेरणा देती रहेगी.

मित्रों, कोई भी काम की शरुआत ईश्वर के आशीर्वाद से करनी चाहिए, और यहाँ तो हम एक ज्ञान यग्न आरंभ कर रहे है ज्ञान और बुद्धि के देवता गणपतिजी और वाणीकी शक्ति माँ सरस्वतीजी के चरण कमल में प्राथना करे की वह हमपे अपना  अनुग्रह करे और हमे वह ज्ञान, वाणी और विवेक प्रदान केरे जिससे हम हमारे इस प्रयास में सफल हो और जीवन का उदेश्य को प्राप्त कर पाए ।

महाकवी, विश्वविख्यात महाकाव्य रामायण के रचयेता श्री तुलसीदासजी से प्रभावीत होने कारण मेंने यह कार्य का मगलाचरण मे भी उन्हीके हि महाकाव्य रामायण के यह श्लोक से अपने अंतःकरण को शुद्ध करके परमपिता परमेश्वर स्वरुप गणेशजी और जगत जननी माँ सरस्वतीजी के चरण कमल में वाक्य पुष्प अर्पित करते है

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि ⁠। मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ⁠।⁠।⁠

अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ ॥

और साथ में हमारे एक मित्र  श्री राजेशभाइ आचार्य – अ‍हमदावाद द्वारा गणेश शब्द का सुन्दर अर्थ  समझाने वाला यह श्लोक से हमारी यात्रा का शुभारम्भ भी करते है 

ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचक: । तयोरीशं परब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम् ।।

ज्ञान का वाचक “ग “, “ण ” निर्वाण ( मोक्ष ) का वाचक है और जो ज्ञान और मोक्ष के इश वहि गणेश एसे परब्रह्म स्वरुप गणेश को मे प्रणाम करता हु ।

प्रथम पद मे तुलसीदास जी ने माँ सरस्वती और गणेशजी की साथ में वंदना की है आम रुप से हम प्रथम गणेश जी कि वंदना करते है पर यहा गणेशजी और सरस्वतीजी की साथ मे वंदना कि गयी है यह रहस्य को जब मेंने सत-संग से जाना वह मे यहा बता रहा हु, अकेले ज्ञान और अकेले शब्दो से कोइ कार्य सिध्ध नहि होता, ज्ञान हो पर शब्द ना मिले तो ज्ञान की कोइ सार्थकता नहि और इसका उसका उल्टा शब्द का समुद्र हो पर ज्ञान ना हो तो भी कोइ प्रयोजन सिध्ध नहि होता, इसी कारण से कि हमारे इस कार्य को माँ के शब्द और गणेशजी के ज्ञान और विवेकरूपी  आशिर्वाद मिले |

कोइ भी कार्य तभी आरंभ करना चाहिए जब हमे वह कार्य मे पुर्ण श्रद्धा और विश्वास हो, अत: श्रद्धा और विश्वास के स्वरुप माँ भवानी शंकर हमारे अंत:करन में सदैव वास करे, जिसके मार्गदर्शन और आश्रय से हम सब अपना व्यक्तित्व और अपनी अंत:चेतना को यहा स्तरपर पंहुचा पाए है ऐसे हमारे सब के अपने अपने गुरुवर को प्रणाम और प्राथना की वह हमारा मार्गदर्शन आगे भी करते रहे, जिसकी शक्ति से यह समस्त संसार अपने कार्य करने में समर्थ है वह परमपिता परमेश्वर हमे भी शक्ति प्रदान करे जिससे यह कार्य हम करने में हम भी समर्थ बने साथ में दृश्य और अदृश्य जगतके समस्त सजीव और निर्जीव जो एक ही परमतत्व के स्वरुप है उन सभी को प्रणाम |

अंत मे यहा जो भी ज्ञान है वह वेदो का है जो समज है वह मेरे गुरुजनो की है, जो बुध्धि है वह गणेशजी की है और जो शब्द है वह माँ सरस्वती के है, प्रेरणा परमेश्वर की है और जो कोइ ट्रुति / क्षति / गलती है वह मेरी समज से है जिसके लिए मे विद्वजनो कि कर बध्ध क्षमा पार्थी हू ।