Let's Learn Something
Let’s Learn Something, Part – 2
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नमस्ते मित्रो ,

प्रथम भाग को आपने स्नेह से स्वीकारा और इस यात्रा के आप सभी सहयोगी का हार्दिक स्वागत एवम्‌ आभार,  आपका यह स्नेह सदैव बनाए रखीएगा ।

महाकवी, विश्वविख्यात महाकाव्य रामायण के रचयेता श्री तुलसीदासजी से प्रभावीत होने कारण मेंने यह कार्य का मगलाचरण मे भी उन्हीके हि महाकाव्य रामायण के जेसा और लगभग वैसा हि किया है ।

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि ⁠। मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ⁠।⁠।⁠

अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥

ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचक: । तयोरीशं परब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम् ।।

ज्ञान का वाचक “ग “, “ण ” निर्वाण ( मोक्ष ) का वाचक है और जो ज्ञान और मोक्ष के इश वहि गणेश एसे परब्रह्म स्वरुप गणेश को मे प्रणाम करता हु । – श्री राजेशभाइ आचार्य – अ‍हमदावाद की मदद से

प्रथम पद मे तुलसीदास जी ने माँ सरस्वती और गणेशजी की साथ में वंदना की है आम रुप से हम प्रथम गणेश जी कि वंदना करते है पर यहा गणेशजी और सरस्वतीजी की साथ मे वंदना कि गयी है यह रहस्य को जब मेंने सत-संग से जाना वह मे यहा बता रहा हु … अकेले ज्ञान और अकेले शब्दो से कोइ कार्य सिध्ध नहि होता, ज्ञान हो पर शब्द ना मिले तो ज्ञान का कोइ मतअब नहि और इसका उसका उल्टा शब्द का समुद्र हो पर ज्ञान ना हो तो कोइ प्रयोजन सिध्ध नहि होता इसी कारण से कि हमारे इस कार्य को माँ के शब्द और गणेशजी के ज्ञानरुप आशिर्वाद मिले यह उद्देश्य से हम भी माँ सरस्वतिजी और गणेशजी की प्रथम वंदना करते है ।

भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ । याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम् ।।

श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप माँ पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते ॥

कोइ भी कार्य हमे तभी आरभ करना चाहिए जब हमे वह कार्य मे पुर्ण श्रद्धा और विश्वास हो और समस्त जगत मे श्रद्धा और विश्वास के प्रतिक एसे माँ पार्वतीजी और शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जो हम पर अनुग्रह करे ।

वंदे बोधमयं नित्यं, गुरु शंकर रूपिणम । यमाश्रितो हि वक्रोपि, चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ।। 

जो ज्ञान स्वरुप स्वरुप, नित्य, गुरुरुप शंकरजी की में वंदना करता हु । जिनके आश्रीत होने से टेठा चंद्रमा भी सर्वत्र वंदीत होता है

गुरु चरण में कोटि कोटि वंदन जिसके मार्गदर्शन और आश्रय से हम सब यहा तक पहोचे, गुरुवर सदैव हम पर अपनी क्रुपा बनाए रखे ।

ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

इस अत्यन्त गतिशील समष्टि-जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के लिए है

परमपिता परमेश्वर जॉ सभी कारणों के मुल कारण है उनकी इच्छा के बिना कोइ कार्य सम्भव नहीं उनकी प्रेरणा और बल कें भरोसे यहा ज्ञान के समुद्र को मथने का प्रयत्न कर रहे है परमात्मा हम पर अपनी अनुकंपा / आशीर्वाद बनाए रखें प्रभु चरण में विनम्र प्राथना ।

अंत मे यहा जो भी ज्ञान है वह वेदो का है जो समज है वह मेरे गुरुजनो की है, जो बुध्धि है वह गणेशजी की है और जो शब्द है वह माँ सरस्वती के है, प्रेरणा परमेश्वर की है और जो कोइ ट्रुति / क्षति / गलती है वह मेरी समज से है जिसके लिए मे विद्वजनो कि कर बध्ध क्षमा पार्थी हू ।